हम बड़े हो रहें है.


            हम बड़े हो रहें है



हाँ हम बड़े हो रहें है,
अब अपने लिये नहीं अपनो के लिये सोच रहे हैं।
अब अपने सपने माँ बाप के हिसाब से चल रहे हैं,
अब पैसे खुद के लिये नहीं,अपने से छोटो के लिए कमा रहें हैं।
अब हम से ज़्यादा सब मायने रखता है,
खुद की चोट छोड़कर,सब का दुःख दिखता हैं।
अब खुद की मुस्कुराहट से ज्यादा पापा को सहारा देने का मन करता हैं,
अब खुद के लिये नहीं,उनके लिये जीने को दिल करता है।
अब घर में हमारे बड़े होने की नहीं,उनकी उम्म्र बढ़ने की बाते होतीं हैं,
उन्के बुढ़ापे में आये बचपने की खुशी होतीं हैं।
अब अपने बचपन में बनाय हुए शब्द फीके पड़ रहें हैं और माता पिता के बोल जिन्दगी को रौशन कर रहे हैं। 
अब लोगों से नहीं लेकिन अपनो से फ़र्क पड़ता हैं,
अब इस भीड़ में नहीं,खुद के साथ रहने का मन करता हैं।
अब दुनियाँ से नहीं खुद से हार जाने का दर लगता हैं,
दुनियाँ जालिम है ये पता होकर भी इसी में खुद को घिसना पड़ता हैं।
उन अपनो के लिए ही उनसे दूर रहे जा रहे हैं,
अब हार जीत का ना सोचकर हर नामुमकिन कोशिश बस किये जा रहे हैं।
अब जिंदगी के फैसले माँ बाप को सोच कर होने लगे हैं,
अब हम भी कुछ उन जैसे बनने लगे हैं।
क्या करे अब हम,
बड़े जो होने लगे हैं।


Comments

  1. Lovely dear. Just take care of typos

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  2. Really amazing 🙂👀👌

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  3. Amazing ✌️ True ✌️ Keep it up ❣️

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  4. Beautiful n True 😍😍😍

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  5. Great... nice way to say

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  6. This comment has been removed by the author.

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  7. Great work!! Deep thoughts!! Bas next time give some more time on matras and typing

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  8. Very well written👍👍👍🔥

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